वह काफी आगे तक निकल चुका था, अब उसे समझ नहीं आ रहा था किस और जाए, ये सोच कर वह रुक गया। उसे कुछ निशान दिखे, जिस ओर उसकी भेड़ गई होगी वहां पर शाखाएं झुकी हुयी थी और वह उस ओर मुड़ गया। कुछ देर बाद वह फिर मुड़ा।
एक घंटा और बीत गया, अब वह भटक गया था। वह याद करने का प्रयास करने लगा कि वह किस ओर से आया था लेकिन उसे तो कुछ भी याद नहीं था। उसके पेट में बल पड़ रहे थे, उसे लगने लगा था बाहर निकलने का रास्ता बस सामने वाला है और फिर वह बढ़ता चला गया।
कुछ दूरी पर थोर को सूर्य के प्रकाश की एक लड़ी दिखाई दी और वो उस और बढ़ गया। थोड़ी सी खुली और साफ़ जगह पर उसने अपने आपको स्थिर कर लिया और जो उसने देखा उसे अपने आँखों पर विश्वास नहीं हुआ।
वहाँ थोड़ी दूरी पर एक लंबे, नीले साटन का लिबास पहने एक आदमी थोर की ओर पीठ किये खड़ा था। उसे एहसास हो रहा था कि वो सिर्फ एक आदमी नहीं है। वह तो कुछ और ही लग रहा था। शायद कोई पुरोहित था। वह काफी लम्बा था और बिलकुल सीधे खड़ा था, सर पर टोप लिए एकदम चुपचाप, ऐसा लग रहा था मानो उसे पूरी दुनिया में किसी का भी फ़िक्र नहीं था।
थोर को पता नहीं था कि क्या करे। उसने पुरोहितों के बारे में सुन तो रखा था लेकिन कभी सामना नहीं हुआ था। उसके पोशाक से और सोने से सज्जित उसकी शख्सियत यही बतला रहे थे वो कोई साधारण पुरोहित नहीं था: यह सब तो शाही था। थोर को समझ नहीं आया। एक शाही पुरोहित भला यहाँ क्या कर रहा था?
एक अनंत काल जैसा महसूस करने के बाद, पुरोहित धीरे से मुड़े और उसकी ओर मुख किया, और जैसे वे मुड़े थोर ने उनका चेहरा पहचान लिया। उसकी तो मानो जैसे सांसें थम सी गई थी। वह राजा का निजी पुरोहित था: राज्य में सबसे प्रसिद्ध चेहरों में से एक। आर्गन, सदियों से पश्चिमी साम्राज्य के राजाओं का सलाहकार। लेकिन