“मुआह।“
उसने आँखें खोलीं और लिली को अपने पास खड़े पाया, जिसके हाथ में बैग था। “क्या तुम तैयार हो?” मुआह ने पूछा।
लिली ने सिर हिलाया और उसके पास से निकली, फिर उसकी ओर घूम कर उसके ठीक सामने रुक गई। “तुम एक पल पहले क्या सोच रही थीं?”
“कि मैं कभी शादी नहीं करूँगी।“ मुआह ने कहा।
लिली ने अपना सिर बहुत हल्के से तिरछा किया। “पर वह तो तुम करोगी ही।“
“नहीं, मैं नहीं करूँगी। क्योंकि मैं इतनी क्रूर दुनिया में अपने बच्चों को लाने से इनकार करती हूँ।“ मुआह ने अपने कन्धे ताने और चेहरा ऊँचा उठाया। “मैं एक मासूम नवजात बच्चे के साथ इस तरह की चीज़ें नहीं होने दूँगी।“ उसने अपने आसपास की जगह में अपने हाथ लहराए। “उन्हें उनकी या मेरी सुरक्षा की चिंता में नहीं डालूँगी।“
लिली ने अपनी साफ़ नीली आँखों से उसे देखा, जो हमदर्दी से भरी हुई थीं। “मैं समझती हूँ, हालाँकि मैं आशा करती हूँ कि किसी दिन तुम इस पर पुनर्विचार करोगी।“
“मैं नहीं करूँगी। कभी भी नहीं।“ मुआह ने दृढ़ता से अपना सिर हिलाया। “हमारी शक्तियाँ कोई तोहफ़ा नहीं हैं। ये अभिशाप हैं।“
लिली ने आह भरी। “तुम गलत हो, और किसी दिन तुम यह समझ जाओगी।“
लिली के पीछे कामरे से बाहर निकलते हुए मुआह ने सिर हिलाया। वह नहीं जानती थी कि अगले चंद मिनटों बाद ज़िंदगी कैसी होगी, लेकिन वह अपने रास्ते पर चलने के लिए दृढ़संकल्प थी। वह एकांतवासी जीवन जिएगी। एक चिरकुमारी का जीवन – अकेली और अपने अभिशाप को दूसरों को देने में अक्षम। वह अपने हाथ खून नहीं लगने देगी।
कोई भी चीज़ उसे इस निर्णय के खिलाफ़ नहीं डिगा पाएगी।
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