“तुमने क्या देखा?” लैखलन और मुआह ने एक साथ एक-दूसरे से पूछा, उनकी आवाज़ें छोटे से कमरे में गूँज रही थीं।
डर की एक लहर मुआह को सिर से पैर तक झिंझोड़ गई। “पहले तुम,” उसने कहा, फिर एक कुर्सी पर धम्म से बैठ गई, थकान उसको गिरफ्त में रही थी। गर्मी और अपने तनाव के कारण, एक दिन में उसके लिए बहुत हो गया था।
फिर भी, उसे जानना ही था कि लैखलन ने क्या देखा था। अपनी ठुड्डी को मुट्ठी पर टिकाते हुए, उसने अपना ध्यान लैखलन पर केंद्रित किया।
वह कुछ कह पाता, उस से पहले ही एक तेज़ चीख ने कमरे को चीर दिया, और मुआह उछल कर खड़ी हो गई। “क्या झमेला है?” वह दा और लैखलन के पीछे खिड़की पर पहुँची जहाँ माँ, समुएल, और लिली भी जल्दी से आ गए।
“इतना सारा भय,” लिली ने कांपती आवाज़ में फुसफुसा कर कहा।
मुआह ने एक गहरे साँस खींची, उसकी नज़रें बाहर हो रहे दृश्य पर जमी हुई थीं। डर से उसका गला भिंच गया। कांपते हाथों से, उसने खिड़की की चौखट का सहारा लिया।
दो आदमियों ने विधवा पियाह को पकड़ा हुआ था और चीखती और पैर फटकारती पियाह को उसके घर से घसीट कर ले जा रहे थे। मुआह ने थूक गटका, नज़रें फेरने की इच्छा होते हुए भी वह देखने से खुद को रोक नहीं पा रही थी। वह गली में दौड़ कर जाना चाहती थी। बेचारी वृद्ध विधवा की मदद करना चाहती थी। उन आदमियों को सख्ती से कहना चाहती थी कि उसे छोड़ दें। लेकिन वह ताकने के अलावा कुछ नहीं कर पाई।
समुएल ने कहा, “और क्रोध…..उनके प्रभामंडल सुर्ख लाल हैं।“
लिली अपने चहरे को हाथों में छिपाते हुए दूर चली गई। “वह बेहद भयभीत है.....बेहद परेशान है। वे उसे क्यों ले जा रहे हैं?”
“वह निर्दोष है.....” लैखलन ने अपना सिर हिलाया।
दा ने अपनी बाँह लिली के कंधे पर लपेटी। “यहाँ आओ, बच्ची।“ वे उसे एक कुर्सी की तरफ ले गए और बाकी लोगों