-क्या तुम तैयार हो? कोई भी अनहोनी घटना के लिए तैयार रहो तथा अपने सिद्धान्तों के अनुसार काम करो। यह तुम्हारी दूसरी परीक्षा है।
- ठीक है, मै तीन दिनों से इस घडी का इंतज़ार कर रहा था, मुझे लगता है मैं तैयार हूँ।
जल्दी से मै उस रास्ते के पास पहुंच गया जो मुझे जंगल ले जाता है। मेरे पैर बिलकुल संगीतमय ताल से चले। असल में यह दूसरी चुनौती क्या थी? चिंता ने मुझे अपने बस में कर लिया और मेरे पैर उस अंजान वस्तु की तलाश में गतिमान हो गए। बिलकुल सामने एक रास्ता उभरा जो विभाजित और अलग होता था। जब मैं वहां पंहुचा, तो मेरे लिये यह आश्चर्यजनक था कि वह विभाजन चला गया था और मैं उसकी जगह सामने के दृश्य को देख रहा था: एक लड़का, एक जवान के द्वारा घसीटा जा रहा है और जोर जोर से रो रहा है। अन्याय के भाव की भावनाएं मुझ पर हावी हो गई और इसलिए मैंने कहा:
-बच्चे को जाने दो, वह तुमसे छोटा है और खुद को बचा भी नहीं सकता।
-मैं नहीं जाने दूंगा। मैं ऐसा इसलिए कर रहा हूँ इसके साथ क्योंकि यह काम नहीं करना चाहता।
-जानवर कहीं के। बच्चों को काम नहीं करना पड़ता। उन्हें पढाई करनी चाहिए और शिक्षित बनना चाहिये। उसे छोड़ दो!
-इसको कौन छुड़ाएगा, तुम?
मै हिंसा के सख्त खिलाफ हूँ लेकिन इस समय मेरे दिल ने कहा कि मुझे इस शैतान से लड़ना चाहिये। बच्चा छूटना ही चाहिये।
आराम से मैंने बच्चे को उस शैतान से अलग किया और उस आदमी को मारने लगा। उसने भी हरकत की और मुझे कुछ घूंसे मारे। उसमे से एक मुझे बहुत पास से लगा। दुनिया शिथिल हो गई और एक ताकतवर मर्मज्ञ हवा ने मुझे पूरी तरह झकझोर कर रख दिया: सफ़ेद और नीले आसमान ने स्वफिट पक्षियों के साथ मेरे दिमाग में घुसपैठ कर दी। एक पल में ऐसा लग रहा था कि मेरे पूरा शरीर हवा में तैर रहा है। बड़ी दूर से एक आवाज़ ने पुकारा। दूसरे पल में ऐसा था कि मैं दरवाजों से गुजर रहा हूँ,