वह उनमें से बस बारह को ही गिन पाया था और उससे अब और इंतज़ार नहीं हो पा रहा था। उसका दिल इतनी ज़ोरों से धड़क रहा था कि जीवन में पहली बार वो अपने झुंड को भूल गया, वो मुड़ा और पहाड़ी से नीचे की और लुड़कने लगा, उसने मन बना लिया था, अब वो नहीं रुकेगा और अपनी पहचान बता कर ही रहेगा।
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वो पेड़ों के बीच से हो कर, टहनियों से चोट खा कर तेज़ी से नीचे की और जा रहा था और अब बस निमिष भर सांस लेने के लिए रुक गया और उसे किसी भी बात की परवाह नहीं थी। थोड़े से खुले में आने पर उसे अपना गाँव दिखाई दिया; यहाँ सफ़ेद मिटटी से बने एक-मंजिला कच्चे मकान थे। और यहाँ दर्ज़नों परिवार रहते थे। चिमनी से धुआं उठ्ता दिखाई दे रहा था क्योंकि बहुत से लोग सुबह का नाश्ता बना रहे थे। यह बेहद ही शांत जगह थी, और राजा के दरबार से बस एक दिन की दूरी थी। रिंग के छोर पर बसा एक और गाँव, पश्चिमी राज्य की व्यवस्था का बस एक और हिस्सा।
थोर ने गाँव के आँगन में पहुँचने का आखिरी पड़ाव भी पार कर लिया था, रास्ते में जब मुर्गियां और कुत्ते उसके रास्ते से भाग खड़े हुए तो धुल उड़ रही थी, और एक बूढी औरत जो नीचे बैठकर चूल्हे पर पानी उबाल रही थी उस पर गुस्से से चिल्लाई।
“ऐ लड़के, धीरे चलो!” जब वो उसके चूल्हे में धूल उड़ाता जा रहा था तो वो चीख कर बोली।
लेकिन थोर कहाँ रुकने वाला था – उसके लिए बिलकुल भी नहीं, किसी के लिए भी नहीं। वो गली के एक ओर मुड गया फिर दूसरी ओर, घर पहुँचने तक वो इन्हीं गलियों, जिसे वो अच्छी तरह जानता था, में दौड़ता-भागता रहा।
उसका घर भी औरों जैसा ही साधारण सा, छोटा, सफ़ेद मिटटी की दीवारों और फूस की छत का बना था। ज्यादातर घरों की तरह, उसका इकलौता कमरा भी विभाजित था, एक तरफ उसके तीनों भाई सोते थे और दूसरी और उसके पिता; औरों के विपरीत, कमरे के पीछे की ओर मुर्गों को रखने का एक छोटा सा पिंजरा था, और थोर को बस